Thursday, October 21, 2010

खुशबू

अ खुशबू, तू तो हवा का एक झोंका है,
पता ना चला, कब फूलो को छोड़ हवा संग हो गयी,
कब मेरे नथुनों में घुस कर हृदय में बैठ गयी,
जगा कर अरमान इस दिल में,
कब फिर हवा संग हो गयी|

उमंगो की कली बन कर खिला था एक पौधे पर,
भगवान ने सितारों को पिघला कर,
रात के आँचल से, ओस की बूंदों के रूप में,
सौप दिया मुझे ये तेरे प्यार का सुन्दर तोहफा,
भंवरों की गुंजन से होकर वशीभूत,
भोर की किरणों ने जब चूम कर जगाया मुझे,
बहती हवा ने, जब तेरा ध्यान दिलाया मुझे,
होकर दिल ने प्रसन्न, पाया तुझे|

पता ना चल कब दिल तेरे भंवर में उलझा,
तैरती रही तेरी मंद मंद गंध, इस जेहन में,
खोया रहा आँखें बंद कर, तेरी मनमोहक अदा में,
सुबह हो या शाम, हर पल तुझे ही ढूंढा,
बन कर फूल दिया आसरा तुझे पल भर,
कर हवा संग तुझे, मुरझा कर पायी नियति अपनी|

आज भगवान् के चरणों में गिर, अ खुशबू,
तुझे बिखेर रहा हूँ, अपना कर्तव्य पूरा कर रहा हूँ,
प्रेम की राहों में, गुजरता हुआ, अपनी उपलब्धि कहूं,
या कहूं इसे नाकामी, मुरझा रहा हूँ,
या कहूं तो तुझे अपने से दूर कर, फिर हवा संग कर रहा हूँ,
ज्यो ज्यो हो रहे हो दूर, हृदय में छा रहे हो तुम,
मिले तुम्हे मंजिल नयी, यही दुआ संग ले जा रहे हो तुम,
खिलने पर जितनी मिली ख़ुशी, मुरझाने पर उतना याद आ रहे हो तुम,
गम नहीं मुरझाने का, गम है साथ छूट जाने का,
यु तो कर के बगावत “भरत”, कल फिर फूल बन कर आएगा,
पर आज, गम है मेरे सरताज, अंत क्षणों में आपका साथ नहीं पा पायेगा|