Sunday, October 11, 2009

क्यू इतना तुम याद आते हो

गुजरे है यादों के मौसम, क्यू तन्हा छोड़ यू तड़पाते हो,
हो जाती है आँखें यू नम, क्यू इतना तुम याद आते हो,

चंद लम्हों की वो बातें, साथ गुजारी वो दिन- रातें,
घडी की सुइयों का न रुकना, वो साथ निभाने की दो बातें,
जब-जब आँखें बंद होती है, क्यू इतना तुम याद आते हो।

वो रात के नीरव सन्नाटे में, वो सुबह के स्वर्णिम उजाले में,
वो शहर की व्यस्ततम सडको पर, वो गाँव की खुली राहों में,
जब- जब आँखें खुलती है, क्यू इतना तुम याद आते हो।

वो रात की मीठी नींदों में, वो दिन भर फैली थकानों में,
वो हर एक दुख की आहों में, वो दिल से निकली दुआओं में,
जब- जब भी सांसे निकलती हैं, क्यू इतना तुम याद आते हो।

वो भौर की पावन हवाओं में, वो खिलते फूलों की फिजाओं में,
वो मिट्टी की सोंधी खुशबू में, वो जीत की हर एक हंसी में,
जब- जब भी सांसे लेता हूँ, क्यू इतना तुम याद आते हो।

याद (Yaad)

CHAHTA HOON BAHUT ROKNA,

PAR YE DIL NAHI RUK PATA HAI,

YAAD TERI AATE HI BAS,

DIL PAAGAL SA HO JATA HAI,

BAS RO KAR KE RAH JATA HAI.



KHAYALON ME TU AATI HAI BAHUT,

TADPATI BHI HAI BAHUT,

TADAP KE YE DIL KEH UTHTA HAI,

YAAD TERI AATI HAI BAHUT.



CHAHTA HAI YE DIL MILNA,

PAR MAJBOORI PAIR PAKDATI HAI,

CHAHTA HOON TUJHE BHULANA,

PAR PHIR-PHIR YAADEIN UMADATI HAI.



KARTA HOON JAB BHI DHYAN TERA MAIN,

DIL CHHATPATA KE RAH JATA HAI,

MILNE KA TUJHSE KHAWAB MERA,

BAS DIL ME HI RAH JATA HAI.



DIKHTI HAI TASWEER TERI JAB,

AANKH ME PAANI LIYE HUE,

YE KAHTE-KAHTE MAT RO TU,

DIL TADAP-TADAP RO JATA HAI.



AATA HOGA TUJHKO BHI,

KABHI-KABHI KHAYAAL MERA,

MAT SAMAJH ISKO SIRF KAVITA,

YAHI HAI DIL KA HAAL MERA.


****Bharat****

आज भी चलता हूँ………………………

यादें गुजरती हैं,
बातें चलती हैं,
आंसू बह जाते हैं,
दिल के अरमान,
बस दिल में ही रह जाते हैं।

दिल में तेरी तस्वीर बनी हैं,
प्यार के धागों से बुनी हैं,
उसमे भी सिर्फ यही कमी हैं,
उसकी आँखों में भी नमी हैं।

दिल में अरमान मचलते हैं,
दिल में भाव भी बहते हैं,
दिल, दिल की बात कहें कैसे,
आंसू ही ये व्यथा कहते हैं।

वो दिन याद आते हैं,
वो लम्हे याद आते हैं,
ये आँखें पानी बरसाती हैं,
जब वो शब्द याद आतें हैं।

दिल में दर्द छुपा हैं,
दिल में यादें छुपी हैं,
दिल में वो शब्द छुपे हैं,
आँखों में मोती बसे हैं,
लबों में अल्फाज़ दबे हैं।

सीने में अरमान दबे हैं,
होठों पे चाहत छुपी हैं,
तुझे खुश देखूं,
हर पल हँसता देखूं,
यही अरमाँ दिल में लिए,
मैं आज भी चलता हूँ………………………

गम का फ़साना

वो आयें तो कुछ यू याद आयें,

हम हुए तन्हा, और तन्हाई में वो ही नज़र आयें।।



कुछ खुशनशी यादों को यूं संजोया है हमने,

कि यादों के झरोखें से रौशनी नज़र आती है।

सोचते है कि ना डूबें इन यादों में,

पर इन्ही यादों में डूब कर तो जन्नत नज़र आती है।।



वो जिन्दगी की रातें भी कुछ अजीब थी,

कभी हुई मोहब्बत तो नींद न आई,

तो कभी जुदाई ने नींद उडाई।।



प्यार करने वालों का ये अंजाम होता हैं,
कभी आँखें रोती हैं, तो कभी दिल रोता हैं ।।



ना चाहो किसी को इतना, कि उसकी चाहत तुम्हारे लिए जरूरी बन जाए,
उसके बिना जीना बन जाए कल्पना, और मरना मजबूरी बन जाए।।



कोई दिल में बस जाए तो हम क्या करें,
कोई आँखों में छा जाए तो हम क्या करें,
सपने में मुलाकात तो उनसे हम कर लेंगे,
पर गर नींद न आये तो हम क्या करें।।



आग जलती रही, बू आती रही, धुआं उठता रहा,
आखिर में जाकर पता चला, ये तो मेरा ही दिल था।।



हरदम चाहा ख़ुशी को, गम के पहाडों को पीछे छोड़ चला,
पर जब देखे सर के ऊपर गम के बादल, तो ख्वाब मेरा बिखर गया।।





*****भरत***

गम का फ़साना

वो आयें तो कुछ यू याद आयें,

हम हुए तन्हा, और तन्हाई में वो ही नज़र आयें।।



कुछ खुशनशी यादों को यूं संजोया है हमने,

कि यादों के झरोखें से रौशनी नज़र आती है।

सोचते है कि ना डूबें इन यादों में,

पर इन्ही यादों में डूब कर तो जन्नत नज़र आती है।।



वो जिन्दगी की रातें भी कुछ अजीब थी,

कभी हुई मोहब्बत तो नींद न आई,

तो कभी जुदाई ने नींद उडाई।।



प्यार करने वालों का ये अंजाम होता हैं,
कभी आँखें रोती हैं, तो कभी दिल रोता हैं ।।



ना चाहो किसी को इतना, कि उसकी चाहत तुम्हारे लिए जरूरी बन जाए,
उसके बिना जीना बन जाए कल्पना, और मरना मजबूरी बन जाए।।



कोई दिल में बस जाए तो हम क्या करें,
कोई आँखों में छा जाए तो हम क्या करें,
सपने में मुलाकात तो उनसे हम कर लेंगे,
पर गर नींद न आये तो हम क्या करें।।



आग जलती रही, बू आती रही, धुआं उठता रहा,
आखिर में जाकर पता चला, ये तो मेरा ही दिल था।।



हरदम चाहा ख़ुशी को, गम के पहाडों को पीछे छोड़ चला,
पर जब देखे सर के ऊपर गम के बादल, तो ख्वाब मेरा बिखर गया।।





*****भरत***

कल भी चाहूँगा

एक तू थी जो हमारी एक बात भी न सह पाई,
एक हम है जो तेरे बिछोह का गम भी सह गए।
जमाना गुजरा तो लगा, कि सभी जख्म भर गए,
यादों कि एक आंधी आई, सब जख्म हरे हो गए।

याद आती थी,
रुलाती थी,
तडपाती थी,

पर हमने फिर भी हमने इस तन्हाई को वफ़ा माना,
तेरी जुदाई को मिलन माना।

हम तो अपनी वफ़ा के बारे में कुछ भी न कह पाए,
पर आप हमे ना जाने क्या क्या उपाधियाँ दे गए।

हर लम्हा मैं हारा,
हर लम्हा मैं रोया,
हर लम्हा मैंने दर्द लिया,
हर लम्हा मैंने जख्म लिया,
हर बार मैं कुछ ना कह पाया,
हर पल मैं तेरी यादों में खोया।

आज भी तेरी यादें हैं,
आज भी तेरी बातें हैं,
आज भी मेरी वफ़ा हैं,
आज भी तेरा दर्द हैं।

आज भी सरताज आपको मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा,
विष का घूँट भी खामोशी से पी जाऊंगा,
मरते हुए भी सनम आपको यही दुआ दे जाऊंगा,
ख़ाक में मिल कर भी, आपको आबाद देखना चाहूँगा।

फिर भी अगर ना हो यकीं अ जानेवफा,
जलने के बाद मेरी ख़ाक से आकर पूछ लेना.
तुम्हे यही जबाब मिलेगा,
मैं तुम्हे कल भी चाहता था,
आज भी चाहता हूँ,
और कल भी चाहूँगा।।

भुला ना सके

आज भी आई जो होठों पे तुम्हारी बात,
हम मुस्कुरा ना सके।
चाहा कि गुनगुनाए गीत कोई,
पर जुबाँ पर वो लफ्ज ला ना सके।
हलक में ही अटक गयी वो बातें,
जिनको हम तुम्हे बता ना सके।

दिल कि दुनिया यूं उजड़ गयी,
हम यूँ ही देखते रहे खड़े- खड़े,
कुछ भी कर के उसे बचा ना सके।

वो देते रहे दुहाई अपने प्यार की,
वो देते रहे कसमे अपने प्यार की,
हम हुए पत्थर दिल,
और कुछ विरोधाभासों से पार पा ना सके।

आई आंधी कुछ इस तरह से,
छूट गया हाथ, हम चिल्ला ना सके।
अ हवा बड़ी बेरहमी की तुने,
बुझा दिए चिराग मोहब्बत के,
और हम बचा न सके।

देते है हम दोष हर किसी को,
न थी हिम्मत या जुटा न सके।
अन्दर ही सिमट गए सारे जज्बात,
निकले नहीं बाहर या बाहर ला न सके।

कल उनकी बातों को दिल से लगा न सके,
आज उनकी बाते दिल से ऐसे जा लगी,
चाह के भी उन्हें मिटा न सके।

गम नहीं इस बात का, कि उन्हें पा न सके,
गम है इस बात का, कि उन्हें भुला न सके।।

हसरत है जो पहली नज़र से

हसरत है जो पहली नज़र से,
काश हुस्न उसे समझ पाए कभी।

हो जाए ख़त्म ये दर्द-ऐ-दिल,
जो दुआ में वो मांग ले मुझे कभी।

तडपता है ये दिल कितना उनके लिए,
काश ये सब उन्हें समझ में आये कभी।

भटक रहा हूँ कब से उनकी चाह में,
इस उल्फत को वो मिटाए कभी।

नहीं करती उनकी तस्वीर बात हमसे,
वो अपनी नज़र का जादू चलायें कभी।

दूर तक फैला है अँधेरा मेरी तन्हाई का,
आकर चिराग-ऐ-दिल जलाये कभी।

ना जाने मेरे प्यार के बारे में वो,
और यूँ ही मिल जाये हम कभी।

हसरत है जो पहली नज़र से,
काश हुस्न उसे समझ पाए कभी।

मुझको ही पाओगे

चले हो दूर तुम हमसे, पर हमे ना भुला पाओगे,
जब जब आओगे आईने के सामने,
चेहरा मेरा ही पाओगे।

मिलेगे तुम्हे और भी, चाहेगे तुम्हे और भी,
पर जब जब तुम लोगे सांस,
हर सांस में महक मेरी ही पाओगे।

जब भी बैठोगे खाने को, एक कौर भी न खा पाओगे,
जो भी हाथ उठेगा मुंह की तरफ,
हाथ मेरा ही पाओगे।

मंजिल की तरफ, तुम जब भी कदम बढाओगे,
मुझको खुदा से दुआ करते,
राहों में हरदम पाओगे।

चाहे तुम अजनबी कहलो, चाहे बेवफा कहलो,
जब जब गूंजेगा गीत कोई,
स्वर मेरे ही पाओगे।

चाहे जिन्दगी धोखा दे दे, चाहे मौत से हो जाए वफ़ा,
पर जब जब आँखें खोलोगे,
मेरी आँखें ही पाओगे।।

Tuesday, August 18, 2009

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sसोचा उस पार, निहारा कई बार, पाया कई बार,
थी तमन्ना, एक हकीकत या एक कल्पना,
सोच के बढ़ा जो आगे, रुक गया, फिर देखा,
सोचा, समझा, फिर एक पल को लगा,
शायद.....................
मंजिले अभी और भी हैं.......................

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