Sunday, October 11, 2009

भुला ना सके

आज भी आई जो होठों पे तुम्हारी बात,
हम मुस्कुरा ना सके।
चाहा कि गुनगुनाए गीत कोई,
पर जुबाँ पर वो लफ्ज ला ना सके।
हलक में ही अटक गयी वो बातें,
जिनको हम तुम्हे बता ना सके।

दिल कि दुनिया यूं उजड़ गयी,
हम यूँ ही देखते रहे खड़े- खड़े,
कुछ भी कर के उसे बचा ना सके।

वो देते रहे दुहाई अपने प्यार की,
वो देते रहे कसमे अपने प्यार की,
हम हुए पत्थर दिल,
और कुछ विरोधाभासों से पार पा ना सके।

आई आंधी कुछ इस तरह से,
छूट गया हाथ, हम चिल्ला ना सके।
अ हवा बड़ी बेरहमी की तुने,
बुझा दिए चिराग मोहब्बत के,
और हम बचा न सके।

देते है हम दोष हर किसी को,
न थी हिम्मत या जुटा न सके।
अन्दर ही सिमट गए सारे जज्बात,
निकले नहीं बाहर या बाहर ला न सके।

कल उनकी बातों को दिल से लगा न सके,
आज उनकी बाते दिल से ऐसे जा लगी,
चाह के भी उन्हें मिटा न सके।

गम नहीं इस बात का, कि उन्हें पा न सके,
गम है इस बात का, कि उन्हें भुला न सके।।

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