Sunday, October 11, 2009

कल भी चाहूँगा

एक तू थी जो हमारी एक बात भी न सह पाई,
एक हम है जो तेरे बिछोह का गम भी सह गए।
जमाना गुजरा तो लगा, कि सभी जख्म भर गए,
यादों कि एक आंधी आई, सब जख्म हरे हो गए।

याद आती थी,
रुलाती थी,
तडपाती थी,

पर हमने फिर भी हमने इस तन्हाई को वफ़ा माना,
तेरी जुदाई को मिलन माना।

हम तो अपनी वफ़ा के बारे में कुछ भी न कह पाए,
पर आप हमे ना जाने क्या क्या उपाधियाँ दे गए।

हर लम्हा मैं हारा,
हर लम्हा मैं रोया,
हर लम्हा मैंने दर्द लिया,
हर लम्हा मैंने जख्म लिया,
हर बार मैं कुछ ना कह पाया,
हर पल मैं तेरी यादों में खोया।

आज भी तेरी यादें हैं,
आज भी तेरी बातें हैं,
आज भी मेरी वफ़ा हैं,
आज भी तेरा दर्द हैं।

आज भी सरताज आपको मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा,
विष का घूँट भी खामोशी से पी जाऊंगा,
मरते हुए भी सनम आपको यही दुआ दे जाऊंगा,
ख़ाक में मिल कर भी, आपको आबाद देखना चाहूँगा।

फिर भी अगर ना हो यकीं अ जानेवफा,
जलने के बाद मेरी ख़ाक से आकर पूछ लेना.
तुम्हे यही जबाब मिलेगा,
मैं तुम्हे कल भी चाहता था,
आज भी चाहता हूँ,
और कल भी चाहूँगा।।

No comments: