Friday, February 12, 2010

कि आंसू सुख गए (Ki Aanshu Sukh गए)

चलते चलते राह पुरानी, वो आँखों का निर्मल पानी,
पतझड़ दर्द की एक निशानी, कि आंसू सुख गए|

समां रंगीन, बेजार हवाएं, पकी फसल, वो तूफां आये,
सूरज कहीं गगन खो जाए, रात अँधेरी, घनी घटायें,
बारिश कि वो भरी जवानी, कि आंसू सुख गए|

आशा भरी करते थे दुआए, सुबह शाम वो ख्वाब सजाएँ,
शीशे कि जंजीर उठायें, आँखों में फिर सजा फिजायें,
आगे ज्यों-ज्यों बढे काफिले, कि आंसू सुख गए|

वक़्त तो हैं ज्यू बहता पानी, आज यहाँ कल बना निशानी,
नहीं रुका था, नहीं रुकूंगा, नहीं थका था, नहीं थकूंगा,
आँखों कि बेबाक बयानी, कि आंसू सुख गए|

कुछ लिखना था, कुछ पढ़ना था, कुछ दिखाना था, कुछ कहना था,
कलम रुकी क्यूँ, न रुकना था, आँख उठी क्यों, यूँ रहना था,
दर्द बन गया हंसी ठहाका, कि आंसू सुख गए|

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