Saturday, February 13, 2010

मुझे आने दो (Mujhe aane do)

नारी को समर्पित ये कविता....

नारी अबला नहीं है, यह उस पर निर्भर है की वो प्राणदायी बनाना चाहती है या प्राणहर्ता.... दुनिया को वो एक और सृजनकर्ता देना चाहती है या फिर बनना चाहती है एक संहारक.......

आने दो, मुझे आने दो,
बस एक बार मुझे आने दो|

ये आवाज़ कहाँ से आई है,
कुछ इधर देख,
कुछ उधर देख,
ये कौन मुझे पुकार रहा.......

आने दो मां, आने दो,
बेटी का धर्म निभाने दो,
बस एक बार मां मुझे,
इस दुनिया में आने दो|

क्यूँ दबा रही हो हस्ती को,
मुझको आवाज़ उठाने दो,
मुझेको आने दो|

मां तुम भी तो एक बेटी हो,
मुझको भी ये हक पाने दो,
तुम रूप सरस्वती, दुर्गा का,
बस अंश रूप पा जाने दो,
मैं ज्योति बन कर उभरी हूँ,
मुझको ज्वाला बन जाने दो|

हरदम सहा है सौतेला व्यवहार,
नहीं मिला तुम्हे बेटे सा प्यार,
बस हरदम रही तेरी पुकार,
बेटी हूँ मैं माँ तेरी,
मुझको आवाज़ उठाने दो,
आने दो, मुझे आने दो,
इस कोख से मां तेरी,
मुझको बहार आ जाने दो,
आने दो, मुझे आने दो|

मां,
बेटी होती सहनशील,
बेटी होती जीवन आधार,
हर गम यु ही सह जाती है,
करती है न जाने कितने त्याग,
बेटी बनकर बांटे खुशियाँ,
मां बनकर बांटे असीम प्यार,
मुझको भी इस सागर में,
प्यार के गोते लगाने दो,
आने दो, मुझे आने दो|

वात्सल्य तुम्ही मां, प्यार तुम्ही,
फटकार तुम्ही मां, पुचकार तुम्ही,
बच्चों के लिए वरदान तुम्ही,
गर लगता तुम्हे गलत जरा,
मेरा दुनिया में आ जाना,
ना आने दो, ना आने दो,
मुझको अन्दर मर जाने दो|

ना देना खुद को दोष कभी,
ना रोना मुझको खो कर कभी,
ना दुनिया मेरे लायक बची,
गर लगता तुम्हे गलत जरा,
मेरा दुनिया में आ जाना,
ना आने दो, ना आने दो,
मुझको अन्दर मर जाने दो|
मुझको अन्दर मर जाने दो|

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